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मेरे पसंदीदा शेर

मज़ा बरसात का चाहो तो इन आँखों में आ बैठो

सफ़ेदी है, सियाही है, शफ़क़ है अबरे-बारां है

दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं

ख़ुश रहो अहले-वतन हम तो सफ़र करते हंै

ज़िन्दा रहना है तो मीरे-कारवां बन कर रहो

इस ज़मीं की पस्तियों में आसमां बन कर रहो

मैं अकेला ही चला था जानिबे-मन्ज़िल मगर

लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया

मन्ज़िल के तमाशाई हर डूबने वाले पे

अफ़सोस तो करते हैं इम्दाद नहीं करते

कितने सुकूं से काट दी पुरखों ने ज़िन्दगी

जो मिल गया नसीब से चुप चाप खा लिया

घरों पे नाम थे नामों उनके साथ के ओहदे थे

बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है

जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा