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नफ़रतें दिल से मिटाओ तो कोई बात बने

प्यार की शम्मएं जलाओ तो कोई बात बने

अशोक साहनी के नए अशआर

बरकत हमारे रिज़्क में आएगी किस तरह

घर में हमारे जब कोई मेहमान ही नहीं

ज़िन्दगी है अगर मुख़्तसर मुख़्तसर

रखिए ज़ादे-सफ़र मुख़्तसर मुख़्तसर

रस्मे-उल्फ़त जहां में आम करो

प्यार से दुश्मनों को राम करो

हर ज़ख़्मे-दिल को हमने सजाया है इस तरह

जुगनू बना दिया कभी तारा बना दिया

हमने माना हर तरफ़ तीरा-शबी का राज है

आप सूरज हैं अगर तो रौशनी फैलाइए

आदमी ख़ुद्दार हो तो वक़्त भी

सर निगूं रहता है उसके सामने

अपने हमसाए से भी वाक़िफ़ नहीं

क्या मुहज़्ज़ब फ़ासले हैं शह्र में

छोड़ दो यह उदासी अशोक

मुस्कराने की बातें करो

कितने सुकूं से काट दी पुरखों ने ज़िन्दगी

जो मिल गया नसीब से, चुप चाप खा लिया

तसव्वुर रात भर तनहाइयों में

तिरी यादों का अलबम लेके आया

ashok sahni

अशोक साहनी

संपादक

अशोक साहनी देश में कलाई घड़ी डायल उद्योग के इस्तंभ हैं. इसके अलावा उनके विशिष्ट गुणों में उर्दू शेरो शाइरी, सही मायनों में जोखिम लेने वाली उद्यमशीलता और भाषा विशेषज्ञता शामिल हैं. उनका हंसमुख स्वभाव हर एक तथा सभी के लिए आनंद देने वाला है.

अशोक साहनी कविताएं

प्रशंसापत्र

  • मुझे प्रसन्नता है कि श्री अशोक साहनी ने अपनी निष्ठां और परिश्रम के आधार पर "खुशबु-ए-चमन" शीर्षक से एक संकलन तैयार किया है जिसमें उन्हों ने उर्दू भाषा के लगभग सभी उत्कृष्ट शायरों की शायरी का नगरी लिपि में प्रकाशन किया है. उन्हों ने उर्दू के कठिन शब्दों का उर्दू व अंग्रेजी अनुवाद भी इस पुस्तक में दिया है. श्री अशोक साहनी के इस साहित्यिक अनुष्ठान से जहाँ एक ओर हिंदी भाषियों को उर्दू शायरी पढ़ने का अवसर उपलब्ध हुआ है वहीँ दूसरी ओर उनका यह प्रयास हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति को सुद्रढ़ बनाने में योगदान देगा. में "खुशबु-ए-चमन" के प्रकाशन के लिए श्री अशोक साहनी को साधुवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि वह दीर्धकाल तक इसी प्रकार साहित्य की सेवा करते रहेंगे।

    भैरों सिंह शेखावत
  • शायरी इंसानियत के अहसास का दूसरा नाम है. अशोक साहनी एक नेक इंसान हैं. खुद शायर हैं और दूसरों का कलम इनके ज़ेहन में है. अशोक साहनी की शायरी में उनकी खानदानी विरासत, मां-बाप से अक़ीदत और खिदमत गुज़ारी, मुहब्बत व उख़ुव्वत और ख़ास तोर पर उनकी शरीक-ए-हयात सुमन जी की सदाबहार शख्सियत झलकती है. उनकी शायरी और उनके मजमुए में उनकी और उनकी ज़िन्दगी में इंसानियत की झलक मिलती है. में इस मजमुए की इशाअत पर तहे दिल से उनकी तारीफ करता हूँ, उनको मुबारकबाद देता हूँ और यह दुआ करता हूँ कि उर्दू अदब देवनागरी में सरसब्ज़ और शादाब हो और पूरे शुमाली हिंदुस्तान में देवनागरी स्क्रिप्ट में उर्दू की यह बेल फले फूले।

    डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी
  • मेरा जाती तजरबा है कि तीन चार सौ साल के अशआर का इंतिखाब और फिर ऐसा खूबसूरत इंतिखाब करना कोई मामूली कारनामा नहीं। बिला शुबा "सुरभि सुमन" (खुशबु-ए-चमन), खुशबु-ए-चमन, रंग-ए-चमन, हुस्न-ए-चमन, शान-ए-चमन और जान-ए-चमन है. मुझे यक़ीन है कि उर्दू दुनिया "अशोक साहनी" के इस कारनामे को हमेशा याद रखेगी।

    डॉ बशीर बदर