लगा के आए हो तुम पेड़ जब बबूल के
तुम्हीं बताओ कहाँ से गुलाब निकलेंगे
दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिल
जिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया है
तख़्लीक़े-कायनात के दिलचस्प जुर्म पर
हँसता तो होगा आप भी यज़्दाँ कभी-कभी
जो अहले-ज़र्फ़ हैं, अहले-ग़रज़ से झुक के मिलते हैं
सुराही सर निगूँ हो कर भरा करती है पैमाना
तवाज़ो का तरीक़ा गर कोई सीखे सुराही से
कि जारी फ़ैज़ भी है और झुकी रहती है गर्दन भी
उजाला तो हुआ कुछ देर को सिह्ने-गुलिस्ताँ में
बला से फूँक डाला बिजलियों ने आशियाँ मेरा
मिरी राहों में तुम काँटे बिछा कर
ख़ुद अपने हक़ में काँटे बो रहे हो
आह मज़लूमों की मत ले ऐ ”अशोक“
तेरी हस्ती को मिटा सकती है यह